भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नायक को परिहास / रसलीन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:56, 22 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=फुटकल कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाइ महावर टीको लिलार दै ओठन काजर कै दृग पीकै।
आए जबै रसलीन लला तब देखत छाइ गए रिस ती कै।
ताहि समय ढिग भामिनी आइ जनाये सखी रसवाद हरी कै।
नैनन में मुस्काइ कह्यो इन बातन तें जनु लागत नीकै॥56॥