भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नारी त्याग अश्रु आँखों से / रूपम झा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 1 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपम झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नारी त्याग अश्रु आँखों से
रख आँखों में नूतन सपना

सदियों से पीड़ा की मारी
बनी रही अब तक बेचारी
तुझपर तेरा जीवन भारी
आज बदल दो तुम पथ अपना

दुनिया कितनी नयी हो गई
सुर्ख और सुरमई हो गई
उठो बढ़ो गाओ मुस्काओ
छोड़ो दुख का मंतर जपना

लड़ना होगा, लड़कर हक लो
पूरा-पूरा अंतिम तक लो
बनो प्रेरणा जग की खातिर
छोड़ो रोना और कलपना

फूल तुम्हीं हो तुम हो माला
मत डालो होठों पर ताला
नियम बदल दो जंगल वाला
सीखो तुम लोहे-सा तपना