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निज़ामुद्दीन-8 / देवी प्रसाद मिश्र

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ग़ालिब ने और क्या कहा था या क्या नहीं कहा था ये सोचते न सोचते मैं जा रहा था कि निज़ामुद्दीन की एक इंतिहापसंद गली में ये जूता मिला। किसी जैदी का ये जूता है। अमाँ वही जैदी जिसने एक जूता बुश पर फेंका था। दूसरा बच गया और यहाँ निज़ामुद्दीन में पड़ा मिला। अब आपने यह कह कर मेरे मन में फाँक डाल दी कि हो सकता है यह जूता जैन अल आबिदीन का हो जो ख़ुदा ख़ैर करे मोहम्मद साहब के पड़पोते होते थे और जैद कहलाते थे। लेकिन देख ये रहा हूँ कि ये तिलिस्म गहराता जा रहा है कि किसका ये जूता है क्योंकि जूता तो ये असदउल्ला ग़ालिब का भी हो सकता है जो गौर तो आपने भी किया होगा कि अक्सर एक ही जूता पहने मिलते थे और दूसरा उन्होंने कमजर्फ़ों की जानिब फेंका होता था और जिनकी क़ब्र जहाँ ये जूता मिला वहाँ से एक फर्लांग भी न होगी। लेकिन यह भी तो हो सकता है यह जूता निज़ामुद्दीन नाम के हजरत का हो जो अल्ला ख़ैर करे कम मुतमव्विज तो कतई न थे। ये भी कहा जाता है कि वो भी अपना एक जूता किसी हाक़िम की जानिब फेंके होते थे। और अफ़वाह तो ये तक है कि एक बार तो उन्होंने ये कारनामा अलाउद्दीन खलजी जैसे हुक़्मरान के साथ कर दिखाया। अब अगर आख़िरी बात तक पहुँच सकूँ तो वो ये है कि एक जूता लेकर मैं निज़ामुद्दीन से घर लौट रहा हूँ। और इस वक़्त तो दिमाग़ में यही फितूर चल रहा है कि सारे आलिम फ़ाज़िल एक ही पैर में जूता पहनते हैं। दूसरा वो हुक़्मरानों की जानिब फेंकते हैं।