भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निनाद / राहुल झा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:00, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण
घने वनों के पार
चट्टानों पर गिरती जलधाराओं का
जो खनखनाता निनाद है...
सगर की उत्तुंग उठी गर्वीली लहरों की
कगार पर
विक्षुब्ध पछाड़ों का
जो हिनहिनाता निनाद है...
ऊँचे कद्दावर दरख़्तों को
हिलाती
गुंजान हवाओं का
जो खिलखिलाता निनाद है...
गूँजती हुई वीणा की तरंगों पर
थिरकता
जो दिपदिपाता निनाद है...
वही निनाद... मैं हूँ!
अपनी ही पुकार की अनुगूँजों के पीछे
बजता हुआ...।