भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निरामय / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:28, 5 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |अनुवादक=रामशंकर द्व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुटिल भ्रूक्षेप
कितने कुटिल भ्रूक्षेप !

कितना विशृँखल मन
मेरे भीतर से निकलकर
धरती पर पड़ा हुआ है

कितने सन्देह,
कितने अनादर
कितने दावे —

बैठी हो तुम मेरी आँखों के सामने,
सिर्फ़ बैठने मात्र से ही
किस तरह से सारे घावों को
तुमने नीरोग कर दिया है,

मैं यही सोच रहा हूँ ।

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी