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निराली रुत में ढलना चाहता है / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"

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निराली रुत में ढलना चाहता है
नगर पहलू, बदलना चाहता है

ये सपने हैं, तुझे कुछ भी न देंगे
कहाँ तक खुद को छलना चाहता है

छिपा रक्खा है, कब से बादलों ने
मगर चंदा निकलना चाहता है

ये संभव ही नहीं है, हठ है तेरी
हवा का रुख बदलना चाहता है?

सफीना दूर है साहिल से तेरा
अभी से क्यों उछलना चाहता है

सम्हलने की है ’आज़र’उम्र तेरी
बता तू क्यूँ फिसलना चाहता है