भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निर्भया का पुनर्जन्म / सुधा चौरसिया

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:50, 11 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा चौरसिया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बार-बार आते-जाते मौसमों की तरह
पैदा होने वाली अनेक निर्भया
भीड़ का मुद्दा बन
सड़कों की आवाज बनतीं
और फिर गुम हो जातीं
प्रशासन, व्यवस्थाएँ
और कानूनी कागजों से निकल दौड़ती
और फिर कागजों में बन्द हो जाती

निर्भया पैदा होती है, होती रहेगी
पुलिस दौड़ेगी, कानून गरजेगा
व्यवस्थाएँ बनेंगी, पुलिस सो जायेगी
कानून मौन होगा, व्यवस्थाएँ शांत
और निर्भया पैदा होती रहेंगी...