भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निष्ठुरता / मनोज कुमार झा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:13, 26 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज कुमार झा }} {{KKCatKavita}} <poem> जाड़े में...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाड़े में कहा गया उस स्त्री से
राहत देती होगी चूल्हे की आँच
गर्मी में कहा गया
बर्तन धोते पानी ठंडक सौंपता होगा
भूमिहीन मजूर से कहा गया सूखे में
इस साल आराम का अच्छा मौका है
मैं ये सब कहाँ सुना याद नहीं
लेकिन सुना जरूर
शायद, अरकार-सरकार के लगुए-भगुए
ताकतवरों के गपशप में।