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नींद आई भी न आई / केदारनाथ अग्रवाल

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नींद
आई भी न आई,
और मैं
सोता हुआ
जगता रहा,
ओस बूँदों में
झलकते
सूर्य को
लखता रहा।

रचनाकाल: १३-०८-१९९०