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नुंवै बरस माथै / सांवर दइया

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लेवड़ा उतरती भींत माथै
लटकायो जद नुवो कलेंडर
छाती सांमै आय र ऊभग्या
       तीन सौ पैंसठ दिन

म्हारी
नित छुलती सांस जाणै
कियां कटै-
एक-एक दिन

लारलै बरस
ना होली-दियाळी लापसी
ना सावण में सातू
रूतां बदळी
अर म्हैं भुगत्या फळ

मुट्ठी भर लोगां री
फाक्यां में आयोड़ो
हरामी रो हाड हरख
कदै नीं ऊभ्यो आय र म्हारै आंगणै

आज सूं भळै
म्हैं हूं
अर सांमै है
ऐ तीन सौ पैंसठ दिन !