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नूर ओ निकहत की ये बरसात कहाँ थी पहले / महेश चंद्र 'नक्श'

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नूर ओ निकहत की ये बरसात कहाँ थी पहले
ज़िन्दगी इतनी हसीं रात कहाँ थी पहले

अब तो पलकों पे सितारे से लरज़ उठते हैं
ग़म-ए-महबूब की ये बात कहाँ थी पहले

तेरी यादों से फ़रोज़ाँ हैं फ़ज़ाएँ जिन की
ऐसी रातों से मुलाक़ात कहाँ थी पहले

उन की बद-मस्त निगाओं का करम है ऐ दिल
ज़िंदगी बज़्म-ए-ख़राबात कहाँ थी पहले

कैफ़ ये दर्द-ए-मोहब्बत ने किया है पैदा
ये दिल-आवेज़ी-ए-नग़मात कहाँ थी पहले

आज यूँ दिल के तड़पने का भरम टूटा है
हसरत-ए-लुत्फ़-ओ-इनायात कहाँ थी पहले

‘नक्श’ उन शोख़-निगाहों का फ़ुसूँ है वरना
दिल में ये शोरिश-ए-जज़्बात कहाँ थी पहले