भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नेता लोगे घुमै लागे / रफ़ीक शादानी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 23 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रफ़ीक शादानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नेता लोगे घुमै लागे,
अपनी-अपनी जजमानी मा.
उठौ काहिलऊ, छोरौ खिचरी
मारो हाथ बिरयानी मा.
इहई वार्ता होति रही कल,
रामदास-रमजानी मा.
दूध कई मटकी धरेउ न भईया,
बिल्ली के निगरानी मा.