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नैय्या जीवन के डोलै छै डगमग / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

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नैय्या जीवन के डोलै छै डगमग लहर बड़ी तेज छै ना ॥टेक॥
बचपना तेॅ खेल गमैल्हेॅ ऐल्हौं तोरोॅ जवानी
विषय-वासना मस्त रहलेॅ खूब करल्हेॅ मनमनानी
बिना पकड़लेॅ गुरू के पैय्यां मिलथौं कहयो नै चेना॥1॥

ठगी-ठगी भरलहेॅ माल खजाना धनों के मतवाला
पाप करतें तोरा लाज नै लागहौं एक दिन होभेॅ दिवाला
करलेॅ पुण्य कमाई जग में शांति सेॅ कटथौं दिन-रैना॥2॥

ऐथौं बुढ़ापा कफ पित्त बढ़थौं तनमा भेथों बेकाम
दाँतोॅ टुटथौं कान्हौं नै सुनथौं लटकी जैथों चाम
उठतें-बैठतें खैतें-पीतें लोर गिरथौं नैना॥3॥

अभियो आजा गुरू शरण में भजलेॅ हरि के नाम
नाम बिना ई मानुष तनमा हो जैथों बदनाम
सद्गुरू ही छेकै नाव खेवैया पार लगैथों ना॥4॥