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नौ बजे से / कंस्तांतिन कवाफ़ी

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साढ़े बारह बजे। बहुत तेज़ी से गुज़र गया समय
नौ बजे से जब मैंने जलाया था लैम्प,
और बैठा था यहाँ आकर। मैं बैठा रहा हूँ बिना कुछ पढ़े,
बिना कुछ बोले। निपट अकेला इस मकान में,
भला किसके साथ बोल सकता हूँ ?

नौ बजे से जब मैंने जलाया था लैम्प,
मेरे जवान जिस्म का साया मंडराता
रहा है मुझे पाने,याद दिलाने मुझे
ख़ुशबुओं से लबालब भरे बंद कमरों का,
मुद्दतों पहले गुज़रे कामविलास का--कितने बिंदास थे वे विलास !
और यह लाया है मेरी आंखों के सामने
गलियाँ जिन्हें अब पहचानना तक मुश्किल है,
अड्डे जो ख़त्म हो गए गहमागहमी वाले,
रंगगृह और वे कहवाघर जो कभी होते थे।

मेरे जवान जिस्म का साया
उन चीजों को भी ले आया जो करती हैं उदास हमें:
परिवार के विलाप, बिछोह, जज़्बात मेरे अपनों के, जज़्बात
मृतकों के जिन्हें समझा गया कितना कम।

साढ़े बारह बजे। कैसे गुज़र गया है समय।
साढ़े बारह बजे। कैसे गुज़र गये हैं साल।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : पीयूष दईया