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न्यूयार्क के लिए एक क़ब्र-7 / अदोनिस

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न्यूयॉर्क
मैं निचोड़ता हूँ तुझे शब्द और शब्द के बीच ; मैं दबोचता हूँ तुझे
लुढ़काता हूँ, लिखता हूँ और मिटाता हूँ तुझे । गर्म, ठण्डा और दरम्यानी ;
जागृत, सोया हुआ और दरम्यानी. मैं तुझ पर झुकता हूँ, आह भरता हूँ तुझे
रास्ता दिखता हूँ और तुझे सीखता हूँ मेरे पीछे कैसे चला जाए. मैं तुझे
कुचलता हूँ अपनी आँखों से, तू जो कुचला गया है आतंक से । मैं तेरी सड़कों
को आदेश देने की कोशिश करता हूँ : मेरी जाँघों के बीच लेट जाओ और मैं तुम्हें
नए नाम दूँगा ।
मैं फ़र्क़ नहीं खोज सका एक सिर और शाखाओं वाली देह
जिसे हम पेड़ कहते हैं और एक सिर और पतले धागों वाली देह के बीच
जिसे हम व्यक्ति कहते हैं ।
मैं कभी पत्थर को कार समझ बैठता हूँ ; शॉप-विंडो में धरा जूतों का एक जोड़ा
मुझे किसी पुलिसवाले का हेलमेट नज़र आता है, और डबलरोटी जस्ते की चादर ।

तब भी, न्यूयॉर्क बकवास नहीं है ; वह एक शब्द है ।
लेकिन जब मैं लिखता हूँ : ‘दमिश्क’ मैं एक शब्द नहीं लिखता बल्कि
एक बक़वास की नक़ल बनाता हूँ. द० मि० श्क० … अब भी एक शोर है, मेरा मतलब है
हवा का एक झोंका । वह एक बार स्याही से बाहर आया था कभी न लौटने को. और समय देहरी पर
पहरा देता पूछता है : वह कब लौटेगा ? वह आएगा कब ?
इसी तरह बेरूत, काहिरा, बग़दाद बिलकुल बकवास हैं
सूरज के धूल के कणों जैसे …
एक सूरज, दो सूरज, तीन, चार, एक सौ ।

(फलाँ-फलाँ जागता है, उसकी आँखें में शान्ति और चिन्ता
घुली-मिली हैं. वह अपने बीवी-बच्चों को छोड़, अपनी पिस्तौल लेकर
बाहर निकल जाता है । एक सूरज, दो सूरज, तीन,
चार, एक सौ… ये रहा वह अपने ही उलझाव से
पराजित कोई डोरी जैसे । वह एक कैफ़े में बैठा करता है. कैफ़े
पत्थरों और खिलौनों से भरा हुआ है जिन्हें हम आदमी कहते हैं, मेढकों से
भरा हुआ जो शब्दों की उल्टियाँ करते हुए सीटों को गंदगी से ढँक देते हैं.) फलां फलां कैसे
कर सकता है विद्रोह जब उसके दिमाग़ में भरा हुआ है ख़ून, और उसका ख़ून
ज़ंजीरों से ?
मैं तुम से पूछता हूँ, जो मुझ से कहते हो
मुझे कोई विज्ञान नहीं आता, मैं विशेषज्ञ हूँ अरबों के रसायनशास्त्र का ।