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पंचम प्रकरण / श्लोक 1-4 / मृदुल कीर्ति

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अष्टावक्र उवाचः
नहीं संग है तेरा किसी से, शुद्ध तू चैतन्य है,
त्याज्य, तन अभिमान ताज दे, मोक्ष पा तू अनन्य है.-----१

तुझसे निःसृत संसार, जैसे जलधि से हो बुलबुला
आत्मा के एकत्व बोध से, मोक्ष शान्ति पथ खुला.------२

दृश्य जग प्रत्यक्ष किंतु , रज्जू सर्प प्रतीत है,
चैतन्य पर तेरी आत्म तत्व में, सत्य दृढ़ प्रतीति है.----३

आशा-निराशा , दुःख -सुख, जीवन -मरण समभाव हैं,
ब्रह्म -दृष्टि, प्रज्ञ स्थित, पर न इसका प्रभाव है.------४