भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पछतावा / होर्खे लुइस बोर्खेस

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:57, 11 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=होर्खे लुइस बोर्खेस |अनुवादक=सरि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने किए जघन्य पाप
औरों से कहीं ज़्यादा ।
मैं नहीं रहा प्रसन्न ।
ग़ुमनामी के हिमनदों को
ले लेने दो मुझे उनकी चपेट में निर्दयता से ।
माता-पिता ने जन्म दिया मुझे
जोख़िम भरे सुन्दर जीवन के खेल के लिए,
पृथ्वी, जल, वायु और आग के लिए ।
मैंने उन्हें निराश किया, मैं ख़ुश नहीं था.
मेरे लिए उनकी जोशीली उम्मीदें पूरी न हुई
मैंने दिमाग़ चलाया सम्मति में
कला के तर्कों, नगण्यता के जाल में ।
वे चाहते थे मुझसे बहादुरी.
मैं वैसा नहीं था ।
यह कभी मुझसे दूर नहीं होती ।
बगल में रहती है सदा,
उदास आदमी की परछाई ।