भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पढ़ा तुम्हारा गीत-पत्र / हिमांशु पाण्डेय

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:30, 22 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय }} <poem> एक खामोशी-सी दिखी एक इंति...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
 
एक खामोशी-सी दिखी
एक इंतिजार भी दिखा
अनसुलझी आंखों में बेकली का
सिमटा ज्वार भी दिखा,
आशाओं के दीप भी जले
विश्वास के सतरंगी स्वप्न भी खिले
लगा जैसे हर सांस
वीणा के सुर में सुर मिलाकर
गुनगुना रही हो, और
जैसे कोई काली-सी कोयल
एक थके राही को प्रेम का,निश्चय का
सुधा-सा गीत सुना रही हो ।

मन हुआ मैं क्यों न लिखता
गीत कुछ इस बानगी के?
पिरोया हो प्यार जिसमें और
बंधा हो स्नेह का अनमोल मोती,
कर सकूं मैं याचना उस गीत में
'याद रखना मुझे और मेरा पता'।

वह तुम्हारा गीत,या फ़िर पत्र
बह गया इस मन-विजन में
स्वर-समीरण बन .