भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पता है अन्त में किस राह पर.. / ओमप्रकाश यती
Kavita Kosh से
Omprakash yati (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:54, 27 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{kkGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = ओमप्रकाश यती |संग्रह= }} {{KKcatGhazal}} <poem> प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
पता है अन्त में किस राह पर संसार जाता है
मगर मन है कि माया की तरफ हर बार जाता है
वहाँ बस नेकियाँ ही साथ जा पाती हैं, सुनते हैं
यहीं पर छूट धन-दौलत का ये अम्बार जाता है
सिमटता जा रहा है जिस्म के ही दायरे में बस
कहाँ अब रूह की गहराइयों तक प्यार जाता है
कोई मासूम बच्चा छोड़ता है नाव काग़ज़ की
तो इक चींटा भी लेकर के उसे उस पार जाता है
जिसे हम धर्म का प्रहरी समझते हैं वही इक दिन
जुए में घर की इज़्ज़त, घर की शोभा हार जाता है