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पत्थर किसी का नहीं होता / रसेल एडसन / प्रचण्ड प्रवीर

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एक आदमी ने एक पत्थर पर घात लगाई। उसे पकड़ लिया। और अपना क़ैदी बना लिया। फिर एक अन्धेरे कमरे में उसे रख कर वह ताउम्र उसकी पहरेदारी करने को मुस्तैद हो गया।

उसकी माँ ने पूछा — क्यों?

उसने कहा — चूँकि यह बन्दी है, क्योंकि यह पकड़ा गया है।

देखो, वह पत्थर सो रहा है — माँ ने कहा — उसे पता भी नहीं कि वह किसी बाग़ में है या नहीं। शाश्वत और शिला माँ-बेटी हैं, यह तो तुम हो जिसकी उम्र बीत रही है और वह पत्थर केवल सो रहा है।

लेकिन मैंने पकड़ा है इसे, माँ, यह मेरा ही जीता हुआ है — आदमी ने कहा।

पत्थर किसी का नहीं होता, यहाँ तक कि अपना भी नहीं। यह तो तुम हो जो जीते गए हो, तुम बन्दी की रक्षा कर रहे हो, जो तुम ही हो क्योंकि तुम बाहर जाने से डरते हो — माँ ने कहा।

हाँ-हाँ, मैं घबराता हूंँ, क्योंकि तुमने मुझे कभी प्यार नहीं किया — आदमी बोला।

यह तो सच है, क्योंकि तुम मेरे लिए हमेशा वैसे ही रहे, जैसा पत्थर तुम्हारे लिए रहा — माँ बोली।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : प्रचण्ड प्रवीर