भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पद / 1 / श्रीजुगलप्रिया
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:32, 19 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीजुगलप्रिया |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
राधा चरन की हूँ सरन।
छत्र चक्र सुपह्म राजत सुफल मनसा करन॥
उर्ध्व रेखा जब धुजादुति सकल सोभा धरन।
मंजु पद गज-गति सु कुंडल मीन सुबरन बरन॥
अष्ट कोन सुवेदिका रथ प्रेम आनँदभरन।
कमल-पद के आसरे नित रहत राधा-रमन॥
काम-दुख संताप-भंजन बिरह-सागर तरन।
कलित कोमल सुभग सीतल हरत जिय की जरन॥
जयति जय नव नागरी पद सकल भव-भयहरन।
जुगल प्यारी नैन निरमल होत लखि लखि किरन॥