भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पराजित सच / अखिलेश्वर पांडेय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:39, 16 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अखिलेश्वर पांडेय |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं अपने समय का पराजित सच हूँ
मैं एक जटिल कथा हूँ
सरल निष्कर्षों के आधार पर
लिखा नहीं जा सकता
इसका उपसंहार
दुखांतिका भी नहीं

आगजनी में जला दिए गए जिनके घर
दफ्तर से लौटते हुए
कत्ल कर दिए गए उनके पिता
वहां जली नहीं केवल एक बोगी
वह तो पूरा राष्ट्र था बल्कि
जो महीनों तक जलता रहा
मैं उन दंगों के बारे में क्या बताउं
उन कत्लों के बारे में भी

क्या उन दुखों की तेज आंधी में
फडफड़ाएगा कभी कोई पन्ना
बोलेगा कभी कोई शब्द
मैं तो चुप हूँ
चुप ही रहूँगा
मैं अपने समय का पराजित सच जो हूँ