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परिकल्पना / राखी सिंह

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सोचो!
तुमने मुझे सोचा और
मैं तुम्हारे समक्ष आ खड़ी हुई

तुम, सोच के
सच होने की कल्पना करो

तुम देखना; मुझ तक आने के
सारे रास्ते
तुम्हारे पैरों में
बिछ जाएंगे
तुम, अपना और मेरा मिलन देखना।