भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परिचय / राजकमल चौधरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:04, 5 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थिकहुँ के हम?
की करइ छी?
नाम की थिक?
कोन अर्थक कोन कर्मक छी?
आर ककरा लेल गामे-गाम, देसे-देस
हम बउआ रहल छी?
किछु बूझल नहि
जीवनक की लक्ष्य
छी ककर हम भक्ष्य
छी अपनहिसँ रहल अज्ञात
बुझै छी अपनो टा ने अपन बात
अछि अभिशाप
सहै छी युगके ताप...
पुछै छी मुदा
आइ त’ अहीं हमर परिचय
रानी! अहीं टाक अछि हमरा कनिक भय।

तेँ किछु त’ कबे करब
आत्म-प्रशंसाक दुःख सहबे करब
किछुओ सत्त,
आ कि सोड़हो आना फूसि
अपने कविताक कल्पनासँ दिन-राति
करैत रहैत छी बलात्कार
एहने स्वप्न देखै छी जे
नहि कहियो हैत साकार
अपनहिसँ अपन नामे
प्रेम-पत्र लिखै छी
ई सत्य थिक
जे युवती सभक हम
बनबैत रहैत छी चित्र
ई सत्य थिक
जे चाह आ सिगरेट मात्र
छथि हमर मित्र
ई सत्य थिक
जे वृद्ध पितासँ
नित्य करै छी झगड़ा-झाँटी
ई सत्य थिक
अपनहि कपारमे ठोकि रहल छी
मोटका भोथर काँटी

इहो सत्य थिक
ताकि-ताकि सिगरेटक अधजरुआ टोंटी
भरि-भरि राति पिबै छी
आन्हर कुकुर बनि
अन्हारमे बौआइत
झों झों करैत जिबै छी...

एकानत निशामे
मेघ-दूतकेँ मोनक बेथा सुनाएब
स्वप्न सुन्दरीक मधुर स्वप्नमे
सौंसे राति गमाएब
ककरा अधलाह लगै छै, रानी?
अहूँ अबस्से
कमलाक धारमे चुभकैत काल
बनि मृणाल, बनि कमल-नाल
सखी-बहिनपाक हेड़िमे सन्हिआयलि
छम छम करैत
भरि जाँघ पानिमे अनचोके डरैत
हएब दुइओ आखर गबिते
केशी मदनमुदारम्, सखि हे!
किन्तु,
गीतसँ हमरा की?
हम त’ अहिना पटनामे
रोटी-चकला-बेलना रटनामे
रटिते रहि जायब भरि जिनगी
अपन ई दुःख सोचि-सोचि
सदिखन लगैत अछि मोनमे मिरगी
तेँ आइ घृणा भ’ गेल गीतसँ हमरा
नहि नीक लगैत अछि कुसुम,
ने कानन, ने कली, ने भमरा
हम अपने जीवनसँ सीदित छी-
की कहू हाल?
मुदा,
आइ त’ अहीं पुछै छी परिचय
रानी! अहीं टाक अछि हमरा भय!

कवि नहि थिकहुँ
कल्पना-पार्वतीक बसहा छी
बा एना कहू, धोबियाके गदहा छी
घरसं घाट, घाटसँ घर धरि
दौगै छी भोर-साँझ
आनक रोपल खेत
चरै छी माँझे-माझ
छी खा जाइत फूल
नहि स्वाद भेटैत अछि तरकारीमे
नहि गुलाब अछि
तेँ एक्कोटा बाड़ीमे
हम गुलाब खा के’ जीवित छी
की कहू हाल?
मुदा,
आइ त’ अहीं पुछै छी परिचय
रानी! अहींटाक अछि हमरा भय
तेँ किछु त’ कहबे करब
सोड़हो आना फूसि
अपनहिसँ थपड़ी पाड़ि सदा
अप्पन गल्प सुनै छी
अपने बनाओल गीत गबैत
पटकै छी अप्पन माथ
स्वान्तः सुखायक हेु राति भरि जागि
दुखबैत छी हाथ
आत्म-विमोहनसँ पीड़ित छी
की कहू हाल?
मुदा,
आइ त’ अहीं पुछै छी परिचय
रानी! अहींटाक अछि हमरा भय।

-वैदेही: जुलाई, 1958