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पर्णकुटीर / समीर बरन नन्दी

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खो गए का चित्र और
डूब गए प्रेम का घाव

आज भी घास पर लिखता रहता हूँ

मेघ की खिड़की खोल कर -- कभी-कभी
वे दोनों मेरे पास आ बैठते हैं ।
हाल-चाल पूछने पर -- दोनों की आँखों से
मुझे एकान्त में छोड़ जाने पर आँसू बहने लगते हैं ।

स्वप्न में... बनाने में लगा रहता हूँ उनके लिए पर्णकुटीर ।