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पर्वत / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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की पहाड़, की गिरि, पर्वत
सबके एक्के एक अरथ।
मूधर कहौ कि शैल, अचल
आकि नग ही कहोॅ अटल।
महीधर, भूमिधरो सब एक्के
भले रहेॅ सब हक्के-बक्के।
ई पहाड़ धरती के प्राण
नदी-वृक्ष केॅ दै छै त्राण।
मेघोॅ के घर ई पर्वत
आय वही छै क्षत-विक्षत।
कंकरीट रं शैल लगै
धूल बनी केॅ मैल लगै।
झरना के सूखै छै प्राण
बिन पहाड़ के देतै त्राण।