भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पर्सोनलाइज़ेशन / पंखुरी सिन्हा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:54, 6 जनवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंखुरी सिन्हा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

व्यक्तिकरण
हर कुछ का
हर सेवा
हर सर्विस का
पर सबसे ज़्यादा उस नंबर का
जिसे थामे रहती हो वह साँझ-सवेरे
मुट्ठी में अपनी
रात-दिन भिची हुई उँगलियों में अपनी
संभवतः दुश्मनी सेना के ही एक अवयव का
जिसे मिलाया भी हो उसने
जब लगा हो उसे कि डाली है चाभी किसी ने
मुख्य-दरवाज़े की सिटकिनी में
आधी रात को
कि धीमे
कि गति में
छिपाई गई है
खन्न से सिटकिनी घूमने की आवाज़
कि बहुत धीमे खिसका रहा है
कोई बाहरी क्लोज़ेट का दरवाज़ा

खासी कच्ची हो नींद आपकी
फिर से चोकोलेट आइसक्रीम खरीद और खा लेने के बाद
खोलने के बाद सारा बंधा सामान
और पाने के बाद
कि ग़ायब हैं
तीनों व्हाइट मिल्क चॉकलेट के बार

आपकी नींद हो खासी कच्ची
मिला लेने के बाद वह नंबर भी
और खिल रहे हों फूल आधी रात को
गमलों में मेरे बरामदे में
खिल रहे हों फूल गमले में
मेरे कमरे में
रात को
सोते में
दूर मेरी माँ के घर में
खिल रहा हो मेरा प्रिय गुलाब
कंटीला गुलाब
फूल खिल रहे हों
शहर के बगीचों में
घरों में अमीर उमरा के

घरों में उनके जिन्हें जाना हो दफ्तर
सुबह के 6 बजे
और बज रही हो दुदुम्भी
युद्ध की बहुत तेज़
कि कैसे घुस रहे हों चोर

फूलों के रास्ते
रास्ते बगीचों के
कमरों में हमारे
और कि भूकंप के एक झटके में
हो रहा हो सब मिट्टी
सिर्फ़ मिट्टी
आख़िरी सच मिट्टी ।