भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना / गुलाम मोहम्मद क़ासिर

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:02, 20 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाम मोहम्मद क़ासिर }} {{KKCatGhazal}} <poem> प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहले इक शख़्स मेरी ज़ात बना
और फिर पूरी काएनात बना

हुस्न ने ख़द कहा मुसव्विर से
पाँव पर मेरे कोई हाथ बना

प्यास की सल्तनत नहीं मिट्टी
लाख दजले बना फ़ुरात बना

ग़म का सूरज वो दे गया तुझ का
चाहे अब दिन बना की रात बना

शेर इक मश्ग़ला था ‘कासिर’ का
अब यही मक्सद-ए-हयात बना