भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाँखुरी लै साजी सेज सेवती की बेलिन / शृंगार-लतिका / द्विज

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:15, 3 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }}{{KKAnthologyBasant}} {{KKPageNavigation |पीछे=मिलि माधवी आदिक फूल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनहरन घनाक्षरी
(ऋतुराज के आगमन से सहचरों को अतिशय आनंद की प्राप्ति का वर्णन)

पाँखुरी लै साजी सेज सेवती की बेलिन, चमेलिन हूँ सरस बितान-छबि छाई है ।
फैल्यौ चहूँ गहब-गुलाबन कौ गंध धूरि, धूँधरित सुरभि-समीर सुखदाई है ॥
चारयौं ओर कोकिल-चकोर-मोर-सोरन सौं, और छिति छोरन अनंद अधिकाई है ।
आज ’ऋतुराज’ के समागम के काज होत, धाम-धाम बेलिन कैं आनँद-बधाई है ॥२९॥