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पाँचम खण्‍ड / भाग 2 / बैजू मिश्र 'देहाती'

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अकचकाय, पूछल दसकंधर,
कोना कोना तौं अएलह कीश।
बिना खबरि देने चलि अएलह,
मन उपजल अछि अति सैं रीस।
राम दूत छी हम दसकंधर,
जनिक प्रिया हरि कयलह चोरि।
किछु सुझाव हुनकर लए अएलहुँ,
करह बिचार अपन मद छोड़ि।
आगाँ आगाँ लए सीताकें,
चलह शरणमे बन्धु समेत।
घुरा सियाकें माफी मांगह,
आयल छी हम करए सचेत।
नहि तऽ बन्धु सहित तों जएबह,
यमक पुरी नहि आन उपाए।
बाँचि ने सकबह हुनक हाथसँ,
राम बिमुख नहि केओ सहाए।
हँसल ठहाका मारि दसानन,
बाजल अति सैं दम्भक बात।
वैह राम अछि जकरा घरसँ,
भगा देने छै अपने तात।
ओ की लड़त हमर भुजसँ,
सुरकि लेबै हम नोसिक संग।
इन्द्र कुवेर वरूण यम सबहक,
कयने छी हम भुजबल भंग।
मात्र एकटा बल रखैत अछि,
ओहि दलक बानर हनुमान।
हमरा दल मे ओहन शक्तिधर,
अगनित अछि के कर अनुमान।
उत्तरमे अंगद पुनि बजला,
अछि हनुमान बहुत डरपोक।
पूर्ण काज नहि कै पौलक तैं,
छपकल अछि कहुँ मत लै शोक।
आज्ञा छलै सिया लय अबिहह,
लंक सिंधुमे दिहऽ डुबाए।
बिनु कयने नहि अबिह दलमे,
रहिह ओम्हरे अलख जगाए।
तोहर बलक जनैछी सभटा,
सिया स्वयंवर केर अपमान।
पिता बालिकेर काँखमे रहलह,
डींड़्ग हैकैत छऽ बैसि मचान।?
बढ़ल जाइ छें रौ तों बानर,
तोहर माथ हम देबौ उतारि।
रावण क्रोध युक्त भै बाजल,
दैत छिऔ बल तोहर घुसारि।
की तकैत छह सेना नायक,
ऐखन करह एकर संहार।
खंड-खंड कए एकर शरीरक,
एतहि बहाबह रक्तक धार।
अज्ञा पाबि सैन्य केर नायक,
दौगल हाथ लेने तरूआरि।
तैखन मुष्टि धरापर मारल,
बालि पुत्र अति सैं बलधारि।
डोलिगेल धरती, जुनु डोलय,
वायु वेगसँ गाछक पात।
खसल चितंग केओ मूँहक बल,
छल रावण संग जतेक जमात।
सभटा मुकुट खसल छल भू पर,
रावण केर आप सकुन समुदाय।
जखन रहस्य राम समझाओल,
मुदित भेला दुख गेल नसाय।
ओम्हर बालि सुत पगकें रोपल,
पृथ्वी पर कहि वचन कठोर।
कैलह बहुत प्रशंसा निज केर,
अपनाकें बुझलह नहि थोर।
अपने मुँह तों कैलह अपने,
बलक प्रशंसा बारम्बारं
सुभट सभक सेहो तो कैलह,
बह देलह तो बलकेर धारं
छौं जौं बली तोरा दलमे क्यो,
उठा छोड़ाबै भू सँ पैर।
सिया हारिकें प्रभु घुरिजैता,
मना लिहह तो लंकक खैरं
दसाननक योद्धा सभ बुझलक,
प्रश्न कयल अछि अति सैं छोट।
पल नहि खसत उठायब पगकें,
बल घमंड फूलल छल मोर।
मुदा उठाबए जे क्यो गेला,
दांति पीसि-पिसि कयल प्रयास।
उठक कथा कही की कनियों,
हिलत ने कनिको भेल उदास।
मेघनाद सेहो उठि कयलक,
अपन शक्ति केर प्रबकल प्रयोग।
बिफल भेल मुँहकें लछकौने,
घुरि आयल जनु ग्रसल कुयोग।
दसमुख सेहो छड़पि उठि आयल,
उठबए अंगद केर पग दौड़ि।
कहल बालि सुत हमर पैर नहि,
धरह रामके सभ उठ छोड़ि।
लज्जित भए रावण तहँ घूमल,
सोझे महलमे कयल प्रवेशं
भेल उदास तेना दुख पूरित,
मणि गमाए फणि उठबए क्लेश।
मन्दोदरी बहुत समझौलनि,
रामचन्द्रसँ छोड़ू बैर।
परब्रह्म छथि निश्चय मानू,
सिया घुराए धरू जा पैर।
किन्तु दसानन किछु नहि सुनलक,
उनटे देल डाँटि फटकारि।
तत अभिमान भरल छल उरमे,
बुझा सुझा सभ बैसल हारिं
अंगद ओम्हर गेला निज दलमे,
सभकें कहलनि अपन प्रसंग।
बल बुद्धिक सभ कयल प्रशंसा,
रावणकें कए अएला दंग।
हिनक आगमन बादमे, राम कयल दरबार।
बजा सैन्यपति सकलकें, युद्धक कयल बिचार।
सुनितहि युद्धक डंका बाजल,
सेना सभ दौगल चहुओर।
चारू द्वार पर युद्ध निरत भए,
गरजि गरजि सभ कयलनि शोरं
तोड़ि पहाड़ कीश सभ लयला,
तोड़य लगला द्वार कपाट।
देवालहुकें तोड़य लगला,
चाहथि लंक प्रवेशक बाट।
हिनका लोकनिक कार्य कलापक,
लंका पति पओलक संवाद।
हँसल ठहाका मारि जोर सँ,
कयल प्रदर्शित मद उन्मादं
गरजि उठल सेनापति सभ पर,
की तकैत छह बैसल गेह।
भालु बानरक एतबा सेखी,
दौगह सभक मेटाबह देह।
हुकुम पाबि दौगल सभ राक्षस,
लक्ष लक्ष संख्या नहि थोर।
विविध प्रकारक अस्त्र सस्त्र सँ,
लागल करए युद्ध घन घोर।
किन्तु प्रहार प्रबल छल कीशक,
दनुज मरै दल शत शत संग।
तोड़ि पहाड़ खसाबथि रिपु पर,
पिचा जाई छल सबहक अंग।
रामादलमे रामक जय छल,
दस मुखकें दनुजक जयकार।
नभ डोलय भू रहि रहि काँपए,
चहुदिश बहए रक्त केर धार।
सहि नहि सकल दनुज, बल कीशक,
संकटमे छल सबहक प्राण।
पीठ देखा भागल रण भू सँ,
जनु बाघक भय मृगक प्रयान।
रावण सुनल सैन्य रण छोड़ल,
क्रोधित भए गरजल घनघोर।
जे छोड़त रण हतब स्वयं हम,
कहल सैन्यकें कए बहु शोरं
सेना सब ठमकल किछु सोचल,
रणमे मरब कहल अछि नीकं
दसमुख हाथ मरब नहि उत्तम,
रण कए मरी से उत्तम थीक।
कयल प्रहार तीब्र राक्षस सब,
बानर दल छल व्याकुल भेलं
त्राहि त्राहि छल मचल सैन्यसे,
की होमक छल की भए गेल।
लड़ै छला हनुमत पच्छिममे,
तोड़क छलनि ओमहरका द्वार।