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पिघलकर पर्वतों सा हमने ढल जाना नहीं सीखा / गिरिराज शरण अग्रवाल

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पिघलकर पर्वतों से हमने ढल जाना नहीं सीखा
न सीखा बर्फ़ बनकर हमने गल जाना, नहीं सीखा

वो राही, तुम ही सोचो किस तरह पहुँचेगा मंज़िल पर
वो जिसने ठोकरें खाकर सँभल जाना नहीं सीखा

हमें आता नहीं है मोम के आकार का बनना
ज़रा-सी आँच में हमने पिघल जाना नहीं सीखा

बदलते हैं, मगर यह देखकर कितना बदलना है
हवाओं की तरह हमने बदल जाना नहीं सीखा

सफ़र में हर क़दम हम काफ़ि़ले के साथ हैं, हमने
सभी को छोड़कर आगे निकल जाना नहीं सीखा