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पी-पी के सुबह-शाम जिसे जी रहे हैं हम / परमानन्द शर्मा 'शरर'

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पी-पी के सुबह-शाम जिसे जी रहे हैं हम
वो ज़िन्दगी का ज़हर है और हम हैं दोस्तो

शिकवा अगर है कोई तो अपनों से है हमें
अपनों का हम पे क़हर है और हम हैं दोस्तो

दुनिया तो क्या है ख़ुद से भी बेग़ाना हो गए
ऐसी जुनूँ की लहर है और हम हैं दोस्तो

लगती है बज़्मे-दुनिया भी अब ग़ैर-ग़ैर-सी
तर्ज़े-तपाके-दहर है और हम हैं दोस्तो

बस नाख़ुदा के हाथ सफ़ीने की लाज है
तुग़्यानियों पे बहर है और हम हैं दोस्तो

हमसे न हाले-बस्ती-ए-दिल पूछो बार-बार
इक हसरतों का शहर है और हम हैं दोस्तो

यों तो शबे-फ़िराक़ थी काटे से कट गई
अब सुबहे-हिज्र क़हर है और हम हैं दोस्तो

अपनी वफ़ा ख़ता बनी उनकी जफ़ा वफ़ा
यह जब्रो-ज़ुल्मो-क़हर है और हम हैं दोस्तो

अब सुबह है क़रीब ‘शरर’ वक़्ते-कूच है
शब का अख़ीर पहर है और हम हैं दोस्तो