Last modified on 11 फ़रवरी 2011, at 16:37

पुल नहीं है / रमेश चंद्र पंत

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:37, 11 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश चंद्र पंत }} {{KKCatNavgeet}} <poem> पाट हैं दो किंतु कोई प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पाट हैं दो
किंतु कोई
पुल नहीं है !

बैठ जाती है
हवा जब
पास थककर
काँप उठती है
नदी की
धार अक्सर

थरथराना
इस तरह तो
हल नहीं है !

सीप-शंखों ने
बुने हैं
स्वप्न मिलकर
पर लहर
बैठी हुई है
होंठ सिलकर

सिलसिला यह मौन का तो
कल नहीं है !