भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पूरा हो चुका चाँद / तेजी ग्रोवर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:21, 5 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तेजी ग्रोवर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूरा हो चुका चाँद
झर चुकी सेमल और टेसू की सुर्ख़ी
कनक की पकती हुई लोच में

महुआ की तीक-सी वह कभी-कभी दिख भी जाती है
लम्बे कश में बदल देती हुई इस दृश्य के ऐश्वर्य को

फिर दिख जाती है कोई जुएँ बीनती हुई माँ
नीले घर के उघड़े हुए काँधे की ओट में

और लो
वो गई वह नंग-धड़ंग भोर में उड़ती-पड़ती
सूखे बालों के अनमने गोदुए में
अण्डों से लबालब भरी हुई