भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेड़ / भास्कर चौधुरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:59, 15 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भास्कर चौधुरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> आहिस्ता- आहिस्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आहिस्ता- आहिस्ता
बड़े होते हैं पेड़-
बच्चे / जवान / फिर बूढ़े

लेकिन मौसम में
हर साल अँखुए फूटते हैं
पत्तियाँ निकलत्यी हैं नई
शिशु के गालों की तरह
कोमल उनकी मुस्कराहट की तरह
भरी हुई ताज़गी से

फूलों से लद जाती हैं डालियाँ
और कुछ दिनों बाद
रस भरे फलों से झुक जाती हैं...