भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेड़ पर अधखाया फल / राकेश रोहित
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:05, 24 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश रोहित |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पेड़ पर अधखाया फल
पृथ्वी के गाल पर चुम्बन का निशान है
यह प्रेम की अधसुनी आवाज़ है
यह सहसा मुड़ कर तुम्हारा देखना है।
यह तुम्हें पुकारते हुए
ठिठक गया मेरा मन है
यह कोई मधुर कथा सुनते हुए अचानक
तुम्हारे आँखों में ढलक आई नींद है।
अधखाए फल से छुपाए नहीं छुपता है
प्यार का मीठा ताज़ा रंग
अधखाए फल से झरते हैं बीज
तो हरी होती है धरती की गोद
अधखाया फल अचानक हथेली पर गिरा
तो मैंने चाँद की तरह उसे समेट लिया
यह धरती पर सितारे बरसने की रात थी
मैंने हौले से चूम लिया उसे
जैसे उनींदे उठ कर तुम्हारा नींद भरा चेहरा।