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पोछय बेटियन के बाप अँखिया से लोरबा / सिलसिला / रणजीत दुधु

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कहिया तक रहतन बेटियन धरती के भरबा,
पोछय बेटियन के बाप अँखिया से लोरबा।

नो माह तक रहल इहो माय के कोख,
हे बड़ी सुघ्रिन ई तनिको नय सोख,
तनिको दुख में रात-रात जग कयलूँ भोरबा,
पोछय बेटियन के बाप अँखिया से लोरबा।

पढ़ा के लिखा के सिखयलूँ ढेरो गियान,
सूरत तो मूरत हे ममता के हे खान,
तनिक्को गो चीज ले मचयलक न´ शोरबा
पोछय बेटियन के बाप अँखिया से लोरबा।

बेटा वाला बइठल हे सगरो खोल के दोकान,
कत्ते गाम घुरलूँ मिले नय कजय ठेकान,
एकऽ गो के माँग-माँग सुन सुन सुखऽ हे ठोरबा,
पोछय बेटियन के बाप अँखिया से लोरबा।

दहेज के दानव कत्ते बेटी के निगललक
कत्ते के आग लगयलक जहर खिलयलक
मर जयतन बेटियन तऽ लगतय के जोड़बा
पोछय बेटियन के बाप अँखिया से लोरबा।