भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रभु गिरधर नागर / मीराबाई

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:27, 24 जून 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसै बदरिया सावन की

सावन की मनभावन की।

सावन में उमग्यो मेरो मनवा

भनक सुनी हरि आवन की।

उमड़ घुमड़ चहुँ दिसि से आयो

दामण दमके झर लावन की।

नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै

सीतल पवन सोहावन की।

मीराके प्रभु गिरधर नागर

आनंद मंगल गावन की।