भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम करती औरत / पूजा खिल्लन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 14 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूजा खिल्लन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

औरतें जब करती है प्रेम
तो दीवारें टूट जाती है नफ़रतों की
सपने बेतहाशा दौड़े चले जाते हैं
ख़्वाहिशों की नींद में,
औरतें छिपकर नही करतीं प्रेम
इसलिए एक खुली किताब-सा
पढ़ा जा सकता है उनका प्रेम
उम्र के लाजि़मी चश्मे के बगैर भी,
यूँ ही अकसर,
जैसे समय के हर ज़रूरी रंग में
ढाली जा सकती है उसकी इबारत
और लिखा जा सकता है एक नया
व्याकरण प्रेम का।