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प्रेम कविताओं का खूबसूरत गुलदस्ता / सुधीर सक्सेना

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प्रेम और शौर्य की अद्भुत स्थली है राजस्थान। ऐसी अपूर्व स्थली कि यहां महलों और दुर्ग की प्राचीरों से लेकर रेत के ढूहों और ढाणियों तक में प्रेम विस्तार पाता है। प्रेम और शौर्य इस मरू-भूमि की जीवन रेखाएं हैं। राजस्थान का मन प्रेमाकुल है। कोई युवती यहां मन वारती है, तो फिर प्राण देने में पीछे नहीं हटती। खैबर पार के विरसे से लदा अमीर खुसरो यूं ही नहीं कह उठता है कि खुसरो ऐसी प्रीत कर, जैसी हिंदु जोय। पूत पराये कारने तिल-तिल कोयला होय। जौहर या साका को देखने का यह भी एक नजरिया है। राजपूताने का यह विरल वैशिष्ट्य है; विश्व में अनूठा। समर्पण, त्याग और रुधिर से सिंचित....
राजस्थान में जुड़े प्रेम के कितने ही आख्यान हैं। प्रेम मरु से सोते की तरह फूटता है। प्रेम जब मरुद्भिद होता है, तो जुनूं की शक्ल अख्तियार कर लेता है। शौर्य जब उसे पोसता है, तो वह प्राचीरें लांघने में संकोच नहीं करता। प्रेम न बाड़ी ऊपजै प्रेम न हाट बिकाय, लेकिन यही प्रेम राजस्थान की सुनहरी रेत में खुर्ख फूलों की तरह खिलता है और इसका परिमल कोसों-कोस दूर तक फैल जाता है। प्रेम अपरिभाषेय है। कवि कहता है कि प्रेमियों को आंधी-पानी रोक नहीं पाते। दिल में प्रियतम की शबीह लिए उसे दुनिया से किनारा तक करने में संकोच नहीं होता। शाइर भी यही कहता है। प्यार क्या है? नूर की बूंद है। जोर बेमानी है कि यह वो आतिश है, जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे। यह इश्क नहीं आसां। इक आग का दरिया है। प्रेम उदात्त भाव है, लेकिन उसकी गली इतनी संकरी है कि उसमें दो नहीं समाते... !
प्रेम पगी कितनी ही गाथाएं हैं। कितने ही आख्यान हैं। वह कौन-सी भाषा है, जिसमें प्रेम की कथाएं नहीं या वह कौन-सी जुबान है, जो प्रेम कथाओं से न्यून है! मरु के विस्तार की तरह हिम की उपत्यकाओं में भी प्रेम है। छहों ऋतुओं को अपने आप में समोए प्रेम सातवी ऋतु है। प्रेम न भीति जानता है, न भित्ति। मन की डार पर प्रेम का बौर कभी भी फूट सकता है।
प्रेम वह है, जो रगों में रक्त-सा बहता है। प्रेम आता है, तो तमाम तिलिस्मों के ताले यकबयक खुल जाते हैं। प्रेम एक अद्भुत रसायन है। वह व्यक्ति का कीमिया बदल देता है। रूसी में कहते हैं - ‘ल्यूबोव कल्त्सो।’ यानि प्यार एक छल्ला है। और आप जानते हैं कि छल्ले का कोई सिरा नहीं होता। ऊ कल्त्सा, न्येत कन्त्सा...।
कवि-अनुवादक नीरज दइया से संवाद होता रहता है। जब-तब योजनाओं पर बात होती है। कुछ योजनाएं सिरे चढ़ती हैं, तो कुछ दम तोड़ देती हैं। सृजन और अनुसृजन (अनुवाद) में उनकी समान गति है। उन्होंने अत्यंत प्रीतिपूर्वक मेरी कविताओं का राजस्थानी में अनुवाद किया है। ‘अजेस ई रातो है अगूण’ में चुनिंदा कविताएं हैं, तो ‘ईस्वर : हां, नीं... तो’ में ईश्वर विषयक कविताएं। कुछ माह पूर्व विभिन्न भारतीय भाषाओं की प्रेम कहानियों और प्रेम कविताओं की संकलन-कृति के बारे में बात हुई। प्रस्ताव उन्हें भा गया। भाई नीरज दइया ने तत्परता पूर्वक मनोयोग से राजस्थानी प्रेम कविताओं का यह संकलन तैयार किया है।
नीरज द्वारा चयनित और अनूदित इन कविताओं से गुजरना अलग रंगोंनूर की दुनिया से गुजरना है। वहां प्रेम के अलग-अलग शेड्स हैं। आस्वाद के अनेक धरातल हैं। प्रेम की अनिर्वच आनंद है, तो प्रेम की पीर भी है। इससे कौन इंकार करेगा कि प्रेम अभी भी तलवार की धार पर धावनो है। शक्लें अलग-अलग है, परंतु खापें कहां नहीं हैं? प्रेम की बेल कभी आंसुओं से सिंचती है, तो कभी रक्त से। प्रेम की छुवन जादुई होती है। वह फूल-सा खिलता है, तो कांटे-सा चुभता भी है। प्रेम बांधता है, तो मुक्त भी करता है। वह मन में काजर आंजता है। अगर इस लोक में कुछ अलौकिक है, तो वह प्रेम है। प्रेम है। प्रेम है। आज के आरजक, हिंस्र और बेढब समय में यदि मुक्ति का कोई कारगर मंत्र है, तो वह बिला शक प्रेम है।
राजस्थानी प्रेम कविताओं के इस अपूर्व संकलन में 35 कवियों की कविताएं हैं। कह सकते हैं कि नीरज ने प्रेम कविताओं का खूबसूरत गुलदस्ता हिंदी पाठकों की खिदमत में पेश किया है। इन कविताओं को पढऩा प्रेम में गहरे डूबना है। डूबा हुआ मैं उसमें डूबा रहना चाहता हूं। डॉ. नीरज दइया और संकलित सभी कवियों को साधुवाद और स्वस्ति-कामना।

- सुधीर सक्सेना
03-08-2021 भोपाल।