भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम के मुक्तक / गरिमा सक्सेना

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:11, 23 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम भक्ति का सागर है, यह तो मोती की माला है।
प्रेम वही रसराज जिसे कवियों ने काव्य में ढाला है।
प्रेम ज्ञान वह जिसके सम्मुख उद्धव जीत नहीं पाए-
प्रेम हृदय में अगर नहीं हो, जाना व्यर्थ शिवाला है।

प्रेम राधा के जीवन का शृंगार है।
प्रेम मीरा के भजनों का आधार है।
प्रेम छोटा है उर में बसा भाव है-
प्रेम संपूर्ण जगती का विस्तार है।

प्रेम वह फूल जो बागों में नहीं खिलता है।
प्रेम अनमोल है, पैसों से नहीं मिलता है।
प्रेम कोमल है पाँखुरी है ये सुगन्ध भरी
प्रेम अविचल है हिलाए से नहीं हिलता है ।