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प्रेम के समान जग, किछुओ न होवे भाई / छोटेलाल दास

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॥मनहर छन्द॥

प्रेम के समान जग, किछुओ न होवे भाई।
जाके उर प्रेम नाहिं, जीवन बेकार है॥
प्रेम बिन ज्ञान नाहिं, प्रेम बिन ध्यान नाहिं।
प्रेम बिन योग तप, मानिए असार है॥1॥
प्रेम बिन बुद्धि नाहिं, प्रेम बिन शुद्धि नाहिं।
प्रेम बिन कबहुँ न, उर के विस्तार है॥
प्रेम बिन सुख नाहिं प्रेम बिन मित नाहिं।
‘लाल दास’ प्रेम बिन, नीरस संसार है॥2॥