भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम पर कुछ बेतरतीब कविताएँ-5 / अनिल करमेले

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:51, 5 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल करमेले }} {{KKCatKavita}} <poem> शायद इसी समय के लिए संचि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शायद इसी समय के लिए
संचित हुए थे मेरे आँसू

दुख की परतें भी जम रही थीं
इसी वर्तमान के लिए

शायद इसी दिन तक के लिए
जीना था मुझे यह जीवन

हाँ
इसी तरह
टूट जाने के लिए।