भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम में भीगे हुए कुछ फूल / रोहित रूसिया

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:16, 19 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोहित रूसिया |अनुवादक= |संग्रह=नद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारा साथ देंगे
दूर तक
प्रेम में भीगे हुए
कुछ फूल
अपने सूखने के
बाद भी

पंखुरी पर बाँसुरी से
गीत गाते पल रहेंगे
रंग फीके हों भले पर
प्यार के सम्बल रहेंगे
गंध मीठी-सी
मधुर मकरंद की
यूँ ही रहेगी
हाँ, समय के
बीतने के बाद भी

था कहा तुमने
जो बिछुड़ेंगे तो
मिल न पायेंगे
बस समय की धार में
डूबेंगे और
बह जायेंगे
क्यों मगर
उतना लबालब
ही भरा है
प्रेम का घट
रीतने के बाद भी

जिन लकीरों ने
लिखी थी
हाथ और
माथे पर ख़ुश्बू
वक्त ने
धो दिया
किस्मत का जादू
एक अरसा हो गया
पर दिल नहीं बदला
अभी भी
साथ तेरा
छूटने के बाद भी