भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम स्मृति-7 / समीर बरन नन्दी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:58, 22 मई 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बचपन चला जाता है --
खरगोश की तरह भाग कर ।

फिर ऊँची चोटी पर
चढ़ने के रह जाते हैं घाव ।

(पर तुम्हे तो मिलता रहता है
ह्रदय-वृत्त में चुम्बन)

सभी इस डाल पर मन-माफ़िक बैठ कर
पाते हैं अपना अपना हिस्सा ।

फिर शाखा प्रशाखाओं में चले जाते हैं
अपने-अपने गद्यों में....

इस तरह से पेड़ मनुष्य का जीवन बढ़ता रहता है
बढ़ता रहता है कविता का अनन्त जीवन...