भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेमपत्र-2 / मदन गोपाल लढा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:02, 17 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढा }} {{KKCatKavita}} <poem> रेशमी रुमाल में लपेटकर …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रेशमी रुमाल में लपेटकर
जिस तरह
तुमने मुझे सौंपा था
पहला प्रेम-पत्र
आज भी लगता है मुझे
सपना सरीखा।

कभी-कभार
एक सपने में ही
गज़र जाती है
समूची जिंदगानी।


मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा