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प्रेरणा / मनीष मूंदड़ा

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जीवन के इस प्रवाह में
प्रेरणा का अभाव-सा है
वैसे तो जीने के लिए निरंतर चल रही है साँसे
पर मानो इस जीवन में खुशियों का दुष्प्रवाह-सा है
झुलसा हुआ हैं अब ये मन
धुल धूसरित हुआ ये तन
किसी अपनत्व को ढूँढता लगातार
अब मानो, जैसे थक से चुके है मेरे सारे विचार
कभी विचारों का उद्वेलन था
प्रखरता का मुझमे संवेदन था
सपने थे, अपने थे
कई सारे मेरे अपने भी थे
अब लक्ष्य विहीन मसीहा-सा मैं
भीड़ में समाहित हुआ जा रहा हूँ
व्याकुल मन लिए,
पीड़ाओं का दंश लिए
अपने होने का वजूद खोता जा रहा हूँ
इन सबका अंत होगा
एक बार फिर से नया आरम्भ होगा
पर आरम्भ से पहले का अंत मुझे जीना होगा
अपने जीवन प्रवाह में एक और प्रेरणा स्रोत को ढूँढना होगा।