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फ़िक्र करते हम अगर नुक़सान की / हरि फ़ैज़ाबादी
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फ़िक्र करते हम अगर नुक़सान की
तो दिशा चुनते नहीं ईमान की
ज़िंदगी अपनी हमें अच्छी लगी
मौत भी देना ख़ुदा सम्मान की
छुप नहीं सकतीं सदा, ये और है
दब गयीं बातें अभी शैतान की
ग़लतियाँ जब आपने कीं ही नहीं
तो क़सम क्यों खा रहे भगवान की
ठीक ही शायद बुज़ुर्गों ने कहा
दोस्ती अच्छी नहीं नादान की
देखता ख़ुद को नहीं है आदमी
ढूँढता है बस कमी इन्सान की