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फ़ुर्सत की बात मुझ से न कोई जिया करे / बेगम रज़िया हलीम जंग

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फ़ुर्सत की बात मुझ से न कोई जिया करे
छोड़ा कहाँ है इस ग़म-ए-जानाँ ने अब मुझे

जब वक़्त था तो जिन से था मिलना नहीं मिले
अब वक़्त ही नहीं तो मोहब्बत है किस लिए

तन्हाइयों की हम को तो आदत सी हो गई
तुम आए दो घड़ी के लिए और चले गए