भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर मेरा दिल दुखा गयी बारिश / सुमन ढींगरा दुग्गल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:25, 23 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिर मेरा दिल दुखा गयी बारिश
आ के तन मन जला गई बारिश

तुम ने वादा किया जब आने का
तुम से पहले ही आ गई बारिश

आँख रोई है संग घटाओं के
सारा काजल बहा गई बारिश

आ के तुम भी सजाओ माँग मेरी
सारी धरती सजा गई बारिश

हम को जी भर के भीग लेने दो
आज तन मन को भा गई बारिश

रुत है झूलों की और फूलों की
याद बचपन दिला गई बारिश

बूँद के तीर तन पे चुभते हैं
प्यास दिल की बढा गई बारिश

कैसी नुदरत है इस की बूँदों में
स्वर्ग धरती बना गई बारिश

जिस्म ओ जां सब 'सुमन' सुलग उठ्ठे
ज़हन ओ दिल पर जो छा गई बारिश